आजादी का एहसास लेकर आई प्रधानमंत्री आवास योजना

Updated on 02-04-2025 12:16 PM

बीजापुर। यह कहानी है जनपद पंचायत उसूर के नियद नेल्लानार ग्राम पंचायत धरमारम की 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला श्रीमती गुंडी बुचमा की जिन्होंने अपने धैर्य और हौसले के बलबूते पर माओवाद के घने अंधेरे के साए में भी अपने सपने को जिंदा रखा। पति की मृत्यु वर्षों पूर्व बीमारी से हो गई थी, अपने पति की मृत्यु के बाद भी श्रीमती गुंडी बुचमा ने हिम्मत नहीं हारी आतंक और भय के माहौल में उसने अपने बेटे को शिक्षा से जोड़े रखा। वर्तमान में केन्द्र सरकार की महत्वकांक्षी प्रधानमंत्री आवास योजना में श्रीमती गुंडी बुचमा को पक्की छत का आवास बनकर तैयार है। क्षेत्र में श्रीमती गुंडी बुचमा का आवास आजादी के 77 वर्ष बाद सच्ची आजादी का एहसास करा रही है।

श्रीमती गुंडी बुचमा के आवास की कहानी इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है चूंकि ग्राम पंचायत धरमारम माओवाद से प्रभावित गांव होने के कारण शासकीय योजनाओं का संचालन कठिन था। आजादी केे 77 वर्ष बाद भी आंतक और भय में ग्रामीण जीने को मजबूर थे। नक्सल प्रभाव के कारण ग्राम पंचायत में पानी, बिजली, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं भी ग्रामीणों को नहीं मिल पा रही थी। भय और आतंक के इस माहौल में ग्रामीण चाह कर भी पक्के आवास का निर्माण नहीं कर पा रहे थे। श्रीमती गुंडी बुचमा एक अकेली महिला जो अपने बच्चे को खेती-बाड़ी कर पालन-पोषण कर रही थी। जिसके मन में विश्वास था कि एक दिन यह परिस्थिति जरूर बदलेगी। मन में विश्वास और धैर्य रखते हुए इस महिला ने अपने बच्चे को दूसरे पंचायत में भेज कर 12वीं तक पढ़ाया, जो की उनके लिए एक उपलब्धि है।

अब उनके परीक्षा की घड़ी समाप्त होने के दिन आ गए थे गांव में सुरक्षा कैंम्प लगने के साथ माओवाद का अंधियारा भी छटने लगा। वित्तीय वर्ष 24-25 में ग्राम पंचायत के द्वारा प्रधानमंत्री आवास योजना की जानकारी मिली। शुरूआत में ग्रामीण डर की वजह से आवास निर्माण करने में डर रहे थे। समय के साथ श्रीमती गुंडी बुचमा ने आवास का निर्माण प्रारंभ किया। वर्तमान में उनका पक्की छत वाला आवास बनकर तैयार हो गया है। हितग्राही अपने पुराने दिनों को याद कर बताती है कि किस तरह 300 माओवाद ने गांव में हमला किया था, जिससे पूरा गांव सहम गया था। श्रीमती गुंडी बुचमा के पुत्र का कहना है की माओवाद के डर से आज तक एक भी पक्का आवास नही बना हमारा आवास पहला पक्का बना है। माओवाद के डर से किस तरह झोपड़ी बिना बिजली, सड़क, पानी के जीवन कट रहा था। सुरक्षा कैम्प लगने के साथ धीरे-धीरे परिस्थितियां बदल रही हैं। मैं शासन प्रशासन का धन्यवाद करता हूं।



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